पौराणिक कथाओं में इतिहास में महिलाओं के साथ अत्याचार या घृणित कार्य जग जाहिर है जहाँ पुरूष वर्ग द्वारा महिलाओं पर अत्याचार किया गया वहीं पुरूष वर्ग द्वारा ही उनकी रक्षा भी की गई । इतिहास में जौहर प्रथा का उल्लेख मिलता है जब रानियाँ और दासियाँ आक्रमणकारियों से घिर जाती थीं और उन्हें इज्जत आबरू बचने के अवसर समाप्त दिखते थे। तब वे चिता में सामूहिक रूप से आत्मदाह कर लेती थीं ।
एक व्यक्ति की अनेक पत्नियाँ, पत्नी को छोड़कर दूसरी पत्नी से ब्याह कर पहली को त्याग देना, पत्नी बच्चों को छोड़कर भाग जाना, पत्नी से अत्याचार करना, पत्नी को उसके पिता के घर से धन सम्पत्ति की मांग करना, पत्नी को अनैतिक कार्यो के लिये दबाव डालना, परिवार के जीविकोपार्जन छोटे बड़े सभी घरेलू कार्य बच्चों की देखरेख, खाने पीने की व्यवस्था करने का दायित्व पूरा नहीं करने पर मारपीट करना । ऐसी अनेक समस्याओं से महिलाएँ जूझती आती हैं । समाज की टीका टिप्पणी, समाज के रीति रिवाज सब महिलाओं पर ही लागू होते हैं । महल से लेकर झुग्गी तक महिलाओं को विभिन्न समस्याओं से जूझना पड़ता है । हद तो जब हो जाती है कि पति को पत्नी के आचरण में शंका होने पर उसे मौत की नींच सुला देना आम बात है । कई बार राक्षसों के झूठे लालच विवाह का झांसा, रातों रात अमीर बनने, फिल्मी कलाकार बनने, अच्छी नौकरी के झांसे में आकर महिला चक्रव्यूह में फंसा जाती है और फिर उस चक्रव्यूह से निकलना असंभव हो जाता है । प्रेमी या पति द्वारा आजकर आयेदिन महिलाओं की नृशंस हत्याएं हो रही हैं । तलाक आम बात हो रही है । करे कोई, भरे कोई, कई स्थानों पर पति पत्नी के झगड़े में बेकसूर मासूम बच्चे माता पिता भाई बहन परिवारजन सजा भुगत रहे हैं । संकीर्ण सोच, परंपरा, रीति-रिवाज, धर्म आधुनिकता फिल्म, अंतर जातीय विवाह क्षमता से अधिक अपेक्षा, भारतीय संस्कार, संस्कृति, धार्मिक परंपरा सतर्कता की उपेक्षा के कारण भी महिलाओं को अत्याचार का शिकार होना पड़ता है । फिल्मों में दिखाए जाने वाले दृश्य और कहानियाँ भी महिला अत्याचार में अहम भूमिका निभाते हैं । हमारी भारतीय संस्कृति में कन्याओं को पूज्यनीय, महिलाओं को आदरणीय एवं माता बहनों को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है । परन्तु जब इंसान हैवान बन जाता है तो सभी बातें गौंड़ हो जाती हैं । अनेक बार महिलाओं की नैसर्गिक सुन्दरता आकर्षण, हंसमुख एवं संवेदनशील स्वभाव एवं परिस्थितियाँ भी उसकी परेशानी का कारण बनती हैं । महिलाओं का सशक्तिकरण, स्वावलंबन, आत्मनिर्भरता, समान अधिकार का पालन अवश्य होना चाहिये लेकिन उनकी परिस्थिति, आम बात का भी ध्यान रखना पड़ेगा । महिलाएँ स्वयं सतर्क रहकर ही अपनी रक्षा स्वयं कर सकती हैं ।